HI/750409 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी||"अब हमारा शरीर सत नहीं है। कृष्ण का शरीर सत, चित, आनंद, है। हमारा यह भौतिक शरीर-असत। और क्योंकि हमें मिला है . . . असत का अर्थ है अस्थायी, वह जो अस्तित्व में नहीं रह सकता। और क्योंकि हमने इस भौतिक शरीर को स्वीकार कर लिया है, इसलिए हम चिंता से भरे हुए हैं। आखिरकार, हमारी चिंता क्या है? हम हमेशा कोशिश कर रहे हैं . . . इसे अस्तित्व के लिए संघर्ष कहा जाता है, योग्यतम की उत्तरजीविता। इसलिए हम सबसे योग्य बनने की कोशिश कर रहे हैं, अस्तित्व बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन ऐसा इस शरीर में संभव नहीं है। यह संभव नहीं है, क्योंकि यह असत् है; यह सत् नहीं है। और क्योंकि संघर्ष यह है कि हम इस शरीर में रहना चाहते हैं, इसलिए व्यग्रता है। असद-ग्रहात। सदा समुद्रविग्ना-धियाम असद-ग्रहात ([[Vanisource:SB 7.5.5|श्री. भा. ७.५.५([[। शास्त्र कहता है कि हम हमेशा चिंताओं से घिरे रहते हैं। क्यों? अब, असद-ग्रहात: "हमने इस शरीर को स्वीकार कर लिया है, जो अस्तित्व में नहीं रहेगा।" असद-ग्रहात।"|Vanisource:750409 - Lecture CC Adi 01.16 - Mayapur|750409 - प्रवचन चै. च. आदि ०.१.१६ - मायापुर}}