"यदि आप आध्यात्मिक बोध के स्तर तक उठना चाहते हैं, तो सूत्र है सर्वोपाधि-विनिरमुक्तम। सर्वोपाधि-विनिरमुक्तम तत्-परतवेण निर्मलम (चै. च. मध्य १९.१७०)। यही शुरुआत है। इसका मतलब है कि शुरुआत ब्रह्म-भूत स्तर है। ब्रह्म-भूत . . . वही बात। यह, नारदा पांचरात्र, सर्वोपाधि-विनिरमुक्तम, और ब्रह्मा भुता प्रसनात्मा (भ. गी. १८.५४), भगवद-गीता, वही बात। इसलिए यह प्रामाणिक है। कोई विरोधाभास नहीं है। भौतिक स्तर में आप एक पुस्तक लिखते हैं, मैं एक पुस्तक लिखता हूं, फिर मैं आपसे असहमत हूं, और आप मुझसे असहमत हैं। वह भौतिक स्तर है। लेकिन आध्यात्मिक स्तर में, आत्म-साक्षात्कार स्तर है। कोई गलती नहीं है, कोई भ्रम नहीं है, कोई अपूर्ण इंद्रियां नहीं हैं और कोई धोखा नहीं है। वह आध्यात्मिक मंच है।"
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