"ब्राह्मण योग्यता प्राप्त करके मानव समाज के भीतर सर्वोच्च व्यक्ति बन सकता है, लेकिन वह भी स्वरूप नहीं है। वास्तविक स्वरूप उस ब्राह्मणवादी योग्यता से ऊपर है। वह वैष्णव, वैष्णव योग्यता है। वैष्णव योग्यता का अर्थ है कृष्ण की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित। सर्वोपाधि विनिर्मुक्तम (चै. च. मध्य १९.१७०)। अगर मैं खुद को एक विद्वान ब्राह्मण मानता हूं, तो भी यह गलत धारणा है। वह भी स्वरूप नहीं है। जब कोई यह समझता है कि "मैं ब्राह्मण नहीं हूं, न क्षत्रिय, न वैश्य, न शूद्र, न अमेरिकी, न भारतीय, न यह, न वह; बस मैं कृष्ण का आत्मिक अवयवभूत अंश हूं, और मेरा एकमात्र कर्त्तव्य कृष्ण की सेवा करना है, "आनुकूल्येन कृष्णानु शीलनम भक्तिर उत्तम ([[[Vanisource:CC Madhya 19.167|चै. च. मध्य १९.१६७]]), वह प्रथम श्रेणी का जीवन है।"
|