"भागवत-धर्म ईर्ष्यालु व्यक्ति के लिए है। परमो निर्मत्सरानाम (श्री. भा. १.१.२)। निर्मत्सरा। जो कोई ईर्ष्या से दूषित है, वह वैष्णव नहीं बन सकता। वह ईर्ष्यालु पशु हो सकता है, लेकिन वैष्णव परमहंस है, परम निर्मत्सरानाम। वह ईर्ष्यालु नहीं है। पर-दुख-दुखी। वैष्णव, पर-दुख-दुखी। श्री प्रह्लाद महाराज कहते हैं, "मेरे भगवान नृसिंह-देव, मुझे कोई समस्या नहीं है।" नैवोद्विजे पर दुरत्यया-वैतरण्य त्वद वीर्य गायन महामर्ता मग्न चित्तः (श्री. भा. ७.९.४३ )। "व्यक्तिगत रूप से, मुझे कोई समस्या नहीं है। लेकिन मुझे खेद है, बहुत खेद है, क्योंकि . . . "ततो विमुख-चेतस, "जो आपकी भक्ति सेवा से वंचित हैं, उनके लिए मुझे खेद है।" तो वैष्णव दूसरों की कठिनाइयों के लिए खेदपूर्ण है। अन्यथा वैष्णव को कोई कठिनाई नहीं है। वह अप्रकृत है।"
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