HI/750522c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मेलबोर्न में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"न ते विदुः स्वार्थ-गतिम। हर कोई स्वार्थी है। हर कोई अपने स्वार्थ की देखभाल कर रहा है। यह अच्छा है, बहुत अच्छा है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपका निज स्वार्थ क्या है? वे नहीं जानते। कोई सोच रहा है, "मेरा निज स्वार्थ यह है"; कोई सोच रहा है, "मेरा निज स्वार्थ यह है," और इसलिए टकराव, संघर्ष, लड़ाई है। लेकिन वास्तव में, निज स्वार्थ एक है, कम से कम मानव के लिए। वह क्या है? भगवान का एहसास। यह अमेरिकियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है; यह भारतीयों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है; प्रत्येक जीव् के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से सभ्य व्यक्ति के लिए। यह निज स्वार्थ है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। वह परम सत्य क्या है? जीवस्य तत्त्व-जिज्ञासा (श्री. भा. १.२.१०)। यह हमारा पहला कर्त्तव्य होना चाहिए। बेशक, हमें रहने की जगह और खाने की सामग्री और यौन व्यवस्था या रक्षा की व्यवस्था चाहिए। यह आवश्यक है। आप वह करते हैं। लेकिन अपने मुख्य कर्त्तव्य को न भूलें। फिर आप बिल्ली और कुत्ते से अलग नहीं हैं। आपका मुख्य कर्त्तव्य भगवान का एहसास है।"
750522 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.०१-२ - मेलबोर्न