HI/750627b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हर कोई इस भौतिक प्रकृति की लहरों में बहा जा रहा है: "खाओ, पियो, मौज करो और आनंद लो।" लेकिन वह सिद्धि नहीं है। वह अपूर्णता है। यदि आप इन भौतिक आवश्यकताओं की लहरों में बहे जाते हैं, तो यह सिद्धि नहीं है। किसी को सिद्ध बनना है। सिद्ध का अर्थ है जो यह समझता है कि "मैं क्या हूं और मेरा कर्तव्य क्या है।" वह सिद्ध है, पूर्ण। ये नहीं की . . .(भ. गी. ७.३)। वह सिद्ध, जीवन की पूर्णता, भी सभी के लिए नहीं है। लाखों में से कोई एक। कृष्ण ने कहा, यतताम अपि सिद्धानां: "जो सिद्ध हैं, वे जो सिद्धि प्राप्त कर चुके हैं, यदि वे मुझे समझने का प्रयास कर रहे हैं, तो शायद एक या दो समझ सकें।"
750627 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.१५ - लॉस एंजेलेस