HI/750708 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद शिकागो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"आप परम सत्य को समझने के लिए अनुमान नहीं लगा सकते। यह संभव नहीं है। इसलिए ब्रह्मा सलाह देते हैं कि व्यक्ति को इस निरर्थक अभ्यास को छोड़ देना चाहिए। यह निरर्थक नहीं है, लेकिन वर्तमान समय में इसका कोई उपयोग नहीं है। तथाकथित ब्रह्मविद्यावादि और धर्मशास्त्री या दार्शनिक, वे नहीं जानते-सट्टेबाज़। तो इस तरह का अभ्यास, ज्ञाने प्रयासम, ज्ञान के लिए प्रयास, उदपास्य, इसे छोड़ दें। ज्ञाने प्रयासम उदपास्य।
फिर क्या चाहिए? नमंत एव। बस वशीभूत हो जाओ। अपने आप को बहुत बड़ा दार्शनिक, धर्मशास्त्री, वैज्ञानिक मत समझो। बस विनम्र रहो। "मेरे प्रिय महोदय, बस विनम्र रहो।" नमंत एव। "फिर मेरा काम क्या होगा? ठीक है, मैं विनम्र हो जाऊंगा। फिर मैं कैसे प्रगति करूंगा?" अब, नमंत एव सन मुखारिताम भवदीय-वार्ताम। "बस भगवान का संदेश सुनो।" "किससे?" सन मुखारिताम: "भक्तों के मुख से।"" |
750708 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.२४ - शिकागो |