"जीव, आत्मा, स्वभाव से खुश है। निराशा का कोई सवाल ही नहीं है। आप कृष्ण की तस्वीर को कहीं भी देखें, कि वे कैसे खुश हैं। गोपियॉं खुश हैं, चरवाहे लड़के खुश हैं, कृष्ण खुश हैं। बस खुशी है। निराशा कहाँ है? इसलिए आप उस मंच पर आऍं। तब आप भी खुश होंगे। आप कृष्ण के पास आऍं। कृष्ण के साथ नृत्य करें। कृष्ण के साथ खाएं। और यह वह जानकारी है जो हम दे रहे हैं। निराशा का प्रश्न कहां है? कृष्ण के साथ आइए। इसलिए कृष्ण व्यक्तिगत रूप से यह दिखाने के लिए आते हैं कि वे वृंदावन में कैसे खुश हैं, और वह आमंत्रित कर रहे हैं, ' मेरे पास आओ' । सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६): ' बस मेरे पास आओ। मैं तुम्हें सब सुख दूंगा।' लेकिन हम नहीं जा रहे हैं। इसलिए यह कृष्ण का दोष नहीं है या कृष्ण का सेवक का दोष नहीं है। जो उस मंच पर नहीं आएगा, वह उसकी गलती है। हम हर जगह प्रचार कर रहे हैं ' कृष्ण चेतना में आओ और खुश रहो' ।"
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