HI/750718 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सर्व-गः। हर जगह जीव हैं। जल में जीव हैं, भूमि पर जीव हैं, वायु में जीव हैं, और अग्नि में क्यों नहीं? अग्नि भी पांच तत्वों में से एक है: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। तो अगर जल में जीव हैं, पृथ्वी पर, हवा में, आकाश में, तो आपत्ति क्या है, आग में नहीं? यह मूर्खता है। और कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं, इमम विवस्वते योगम प्रोक्तवान अहम् अव्ययम् (भ. गी. ४.१): "मैंने यह तत्वज्ञान पहले सूर्य-देवता को बताया था।" तो जब तक कि सूर्य-देवता न हो या सूर्य ग्रह का राजा . . . तो यदि यह राजा है, तो नागरिक होने चाहिए, राज्य होना चाहिए-लेकिन वे आग से बने हैं। तो इसी तरह, वैकुंठ जगत में सब कुछ आध्यात्मिक है। ये हमे सीखना है। हम मूर्खतापूर्वक अपना निष्कर्ष नहीं निकाल सकते हैं। यह संभव नहीं है।"
750718 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.३३ - सैन फ्रांसिस्को