HI/750726b बातचीत - श्रील प्रभुपाद लगूना बीच में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हर कोई धूप चाहता है। एक जगह इनकार क्यों है, और एक जगह धूप है? आप स्वतंत्र नहीं हैं। हालांकि आप धूप चाहते हैं, फिर भी धूप नहीं है। तो आप कैसे स्वतंत्र महसूस करते हैं? आप धूप लाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। श्रेष्ठ व्यवस्था है। अत: उस श्रेष्ठ व्यवस्था को स्वीकार कर लेना ही वास्तविक कर्त्तव्य है, स्वाधीनता का मिथ्या उद्घोष न करना। यह संभव नहीं है। यदि मैं कहता हूँ: "मैं कानून का पालन करने वाली प्रक्रिया से मुक्त हूं, सरकार द्वारा दिया गया कानून। मैं सरकार के कानून से मुक्त हूं," यह संभव नहीं है। यदि आप गैरकानूनी हो जाते हैं, तो आपको गिरफ्तार कर लिया जाएगा और जेल में डाल दिया जाएगा। तो यह घोषित करने का क्या फायदा है कि, "मैं सरकारी कानूनों से मुक्त हूं"? कोई स्वतंत्रता नहीं है। हमें जो भी थोड़ी बहुत स्वतंत्रता दी गई है, यदि आप इसका सही उपयोग करते हैं, तो यह बहुत अच्छा है। यदि हम अनावश्यक रूप से घोषणा करते हैं कि, "मैं किसी भी दायित्व से मुक्त हूँ," वह पागल आदमी का प्रस्ताव है।"
750726 - वार्तालाप - लगूना बीच