"तो अगर आप अपने आप को सात्विक स्तर पर रखते हैं, तो जुनून और अज्ञानता के कारण गिरने की संभावना है। लेकिन अगर आप खुद को शुद्ध-सत्त्व स्तर पर रखते हैं . . . शुद्ध-सत्व स्तर का मतलब है भक्ति सेवा। सत्वम विशुद्धम वासुदेव-शब्दितम (श्री. भा. ४.३.२३)। शुद्ध स्तर का मतलब है . . . उसे वसुदेव कहा जाता है। जैसे वसुदेव एक बच्चे को जन्म दे सकते हैं जिसका नाम कृष्ण है, इसी तरह, यदि आप अपने आप को वसुदेव स्तर पर रखते हैं, सत्त्वम विशुद्धम वसुदेव-शब्दितम, फिर कृष्ण जन्म लेंगे। कृष्ण जन्म लेंगे। तो हमारे ये नियम और कानून, प्रतिबंध, का मतलब है वसुदेव स्तर पर अपनेआप को रखना। हमें हमेशा यह याद रखना चाहिए। और अगर आप अपने आप को वसुदेव स्तर पर रखते हैं, ये चीजें तुम्हें लुभाएंगी नहीं। अन्यथा हम मोहित हो जाएंगे और हमारा पतन हो जायेगा। अगम हृच्छ-छाय-वशम सहशैव विमोहित:।"
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