HI/751011 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद डरबन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो जीवन का यह मानवीय रूप बहुत दुर्लभ है, बहुत ही कम मिलता है। दुर्लभं मानुषं जन्म।
कौमारा आचरेत प्रागणो
धर्मान भागवतान इहा
दुर्लभं मानुषं जन्म
तद अपि अध्रुवं अर्थदं
:(श्री.भा ०७.०६.०१)

यह प्रह्लाद महाराज का संस्करण है। वह अपने विद्यालय के दोस्तों के बीच कृष्ण भावनामृत का प्रचार कर रहा था। क्योंकि उसका जन्म एक असुर पिता के कुल में हुआ था, हिरण्यकिपु, इसलिए उसे कृष्ण नाम का उच्चारण भी मना था। उसे महल में कोई अवसर नहीं मिलता था, इसलिए जब वह विद्यालय आता था, तो खाने की घंटी में अपने पांच साल के नन्हें दोस्तों को बुलाकर, इस भागवत-धर्म का प्रचार करता था। और मित्र कहते थे, 'मेरे प्रिय प्रह्लाद, अभी हम बच्चे हैं। ओह, इस भागवत-धर्म का क्या उपयोग है? चलो खेलते हैं'। अब उसने कहा, 'नहीं'। कौमारा आचरेत प्रागणो धर्मान भागवतान इहा दुर्लभं मानुषं जन्म (श्री.भा ०७.०६.०१): मेरे प्यारे दोस्तों, यह कहकर कृष्ण भावनामृत को मत टालो की उम्र ढलने पर इसे विक्सित करेंगे। नहीं, नहीं'। दुर्लभं। 'हम नहीं जानते कि मौत कब आएगी। अगली मृत्यु से पहले हमें इस कृष्ण भावनामृत शिक्षा को पूरा करना है'। यही मानव जीवन का उद्देश्य है। अन्यथा हम अवसर गवां रहे हैं।”

751011 - प्रवचन भ.गी १८.४५ - डरबन