"मुक्ति का अर्थ है ... जैसे कोई रोगग्रस्त है, और रोग के कई लक्षण हैं। इसलिए जब कोई बीमारी से मुक्त हो जाता है, तो लक्षण गायब हो जाते हैं। इसी तरह, मुक्ती का मतलब है कि हमने अपनी मूल, संवैधानिक स्थिति खो दी है। क्योंकि यहां चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि जीव की वास्तविक स्थिति यह है कि वह कृष्ण के नित्य सेवक हैं। इसलिए हमारी स्थिति नौकर, अधीनस्थ की है। यह वैदिक निषेधाज्ञा भी है। ऐको यो बहुनाम विदाधती कॉमा। नित्यो नित्यानं चेतनास चेतनानाम (कथो.उप. २२.१३।)। वह सर्वोच्च व्यक्ति है, सभी का सर्वोच्च प्रदाता है। हमारी स्थिति है, हम पोषित हैं, और कृष्ण पोषण करनेवाले हैं।"
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