"तो एक सौ साल में से पचास साल, पचास साल सोने में बर्बाद हो जाते हैं। और फिर पचास साल संतुलित करें, बचपन और जवानी में बीस साल, खेल-कूद, बुढ़ापे में और बीस साल . . . जरया ग्रस्त। जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि (भ. गी. १३.९)। ये अपरिहार्य हैं। जैसे जन्म अपरिहार्य है, मृत्यु अपरिहार्य है, उसी तरह, बुढ़ापा अपरिहार्य है। तो इस तरह हमारा समय बर्बाद होता है, क्योंकि हम पता नहीं यह मानव जीवन कितना मूल्यवान है। ऐसी कोई शिक्षा नहीं है। वे सोचते हैं कि मानव जीवन कुत्ते के जीवन जितना सस्ता है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है।"
|