"जब तक कोई इंसान न हो, कौन प्रस्ताव दे सकता है? कुत्ता प्रस्ताव नहीं दे सकता। जानवर प्रस्ताव नहीं दे सकता। तो पश्चिमी दुनिया भर में यह प्रस्ताव कौन दे रहा है, कि इस शरीर के भीतर वास्तविक व्यक्ति है? इसे कौन समझता है? इसलिए वे 'सभी जानवर हैं। उनके तथाकथित दर्शन का मूल्य क्या है? हम्म? आप क्या सोचते हैं? यस्यात्मा बुद्धि: कुनापे त्रि-धातुके (श्री. भा. १०.८४.१३)। यदि वह जीवन की शारीरिक अवधारणा में है, तब वह पशु ही रहता है। उसकी शोध प्रबंध का मूल्य क्या है? अब यहाँ शोध प्रबंध है। अब प्रतिपक्षता भी है। वास्तव में हम समायोजित करने का प्रयास कर रहे हैं। केवल समाज। शोध प्रबंध आत्मा है, प्रतिपक्षता शरीर है, और संश्लेषण यह है कि शरीर और आत्मा को कैसे समायोजित किया जाए ताकि आत्मा को इस जटिलता से लाभ हो।"
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