HI/751226b Lectutre - श्रील प्रभुपाद Sanand में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यदि कोई कृष्ण भावनामृत को अपनाता है, भले ही वह मुचि परिवार में पैदा हुआ हो, तो वह शुचि बन जाता है। और यदि कोई व्यक्ति ब्राह्मण परिवार या क्षत्रिय परिवार में पैदा हुआ है, लेकिन वह कृष्ण भावनामृत को नहीं अपनाता है, तो वह शुचि बन जाता है। इसकी पुष्टि भगवद-गीता में भी की गई है, माम हि पार्थ व्यापाश्रित्य ये 'पि स्युः पापा-योनय:(भ. गी. ९.३२)। पापा-योनि का अर्थ है मुचि, शूद्रों से कम। यदि वह कृष्ण भावनामृत को अपनाता है, ते 'पि यान्ति पराम गतिम्, वे भी धाम, भगवत धाम वापस जाने के पात्र हैं। तो यहां तक कि पाप-योनी या एक मुचि भी जो निम्न श्रेणी के परिवार में पैदा हुआ है, अगर वह कृष्ण भावनामृत को अपनाता है, वह देवता बन जाता है। शुकदेव गोस्वामी द्वारा श्रीमद-भागवतम में भी इसकी पुष्टि की गई है,
किरात-हूणंध्र-पुलिंद-पुलकशा
आभीर-शुम्भा यवनाः खशादयः
ये 'न्ये च पापा यद-अपाश्रय:
शुध्यन्ति प्रभविष्णवे नमः
(श्री. भा. २.४.१८)

इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कहां पैदा हुए हैं। यदि हम कृष्ण भावनामृत अपनाते हैं, तो वह शुद्ध, शुचि, पवित्र हो जाता है, और वह धाम वापस, भगवत धाम वापस जाने के योग्य हो जाता है।"

751226 - प्रवचन भ. गी. १६.०७ - सनंद