HI/760112 सुबह की सैर - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यदि परमपिता कोई व्यक्ति नहीं है, तो ये व्यक्तिगत पिता यहाँ कहाँ से आए? मूढ़ो नाभिजानाति माम् एभ्यः परं अव्ययम् ( भ. गी. ७.२५). "माम्-यह व्यक्ति है। मूढ़ यह नहीं समझ सकते कि परमपिता एक व्यक्ति हैं। इसलिए अर्जुन ने, जब उसने भगवद्गीता को समझा, तो उसने घोषणा की कि "यह बहुत, बहुत कठिन है . . ." (एक तरफ) हरे कृष्ण। जय। हरे कृष्ण। ". . . आपके व्यक्तित्व को समझना। यह बहुत, बहुत कठिन है।" अर्जुन ने कहा है। और उसने उसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया है, पुरुषं शाश्वतम्, "आप नित्य व्यक्ति हैं।" परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं, पुरुषं शाश्वतं दिव्यं आद्यम् ([[[Vanisource:BG 10.12 (1972)|भ. गी. १०.१२]])। ये बातें वहाँ हैं। असली समझ वहाँ है। और उन्होनें कहा, "यह है . . . यह व्यासदेव, नारद, देवल द्वारा स्वीकार किया गया है।" स्वयम् चैव, "और आप भी बोल रहे हैं।" फिर निर्गुण का प्रश्न कहाँ है?"
760112 - सुबह की सैर - बॉम्बे