"हर कोई भगवान की सर्वोच्चता को चुनौती दे रहा है। हर कोई भगवान बनने की कोशिश कर रहा है। इसलिए पूरी दुनिया अव्यवस्थित स्थिति में है। अगर हम इस अव्यवस्थित स्थिति को समायोजित करना चाहते हैं, तो हमें भगवान के अवतार की आवश्यकता है। वह पहले से ही मौजूद है। नाम-रूपे काली काले कृष्ण-अवतार ([[[Vanisource:CC Adi 17.22|चै. च. आदि १७. .२२]])। यह हरे कृष्ण आंदोलन नाम के रूप में कृष्ण का अवतार है। इसमें कोई अंतर नहीं है। संकीर्तन आंदोलन जिसका उद्घाटन श्री चैतन्य महाप्रभु ने किया था . . . और श्री चैतन्य महाप्रभु स्वयं कृष्ण हैं। इसलिए अभिन्नत्वाद् नाम-नामिनोः (चै. च. मध्य १७.१३३)। तो यह हरे कृष्ण आंदोलन कृष्ण या चैतन्य महाप्रभु से अलग नहीं है। इसलिए यदि हम भगवान के इस पवित्र नाम, हरे कृष्ण का आश्रय लेते हैं, तो हम बच जाएँगे। परित्राणाय साधुनाम (भ. गी. ४.८). हम केवल हरे कृष्ण मंत्र का जाप करके साधु बन जाएँगे। चेतो-दर्पण-मार्जनम (चै. च. अन्त्य २०.१२)।"
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