HI/760221 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यह शरीर अंतवत् है। अंत का अर्थ है यह समाप्त हो जाएगा। हर कोई जानता है कि उसका शरीर स्थायी नहीं है; यह समाप्त हो जाएगा। कोई भी भौतिक वस्तु-भूत्वा भूत्वा प्रलीयते (भ. गी. ८.१९)-इसकी जन्म तिथि होती है, यह कुछ समय तक रहती है, और फिर नष्ट हो जाती है। इसलिए आध्यात्मिक शिक्षा इस समझ से शुरू होती है कि "मैं यह शरीर नहीं हूँ।" यह आध्यात्मिक शिक्षा है। भगवद्गीता में कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया पहला निर्देश यह है कि, "हम यह शरीर नहीं हैं।" |
760221 - प्रवचन महोत्सव आविर्भाव दिवस, भक्तिसिद्धांत सरस्वती - मायापुर |