"अतः कृष्ण भावनामृत के बिना कोई भी व्यक्ति उच्च व्यक्तित्व वाला नहीं हो सकता। यह संभव नहीं है। यह वैदिक ज्ञान का निर्णय है। हराव अभक्तस्य कुतो महद्गुणा मनोरथेना आसतो धावतो बहिः (श्री. भा. ५.८.१२): "जो लोग भगवान के भक्त नहीं हैं, उनमें कोई भी अच्छे गुण नहीं हो सकते।" यह संभव नहीं है। "क्यों? इतने सारे बड़े-बड़े आदमी हैं, डॉक्टर, डॉक्टरेट, विश्वविद्यालय से इतनी बड़ी-बड़ी उपाधियाँ प्राप्त किये हैं।" नहीं। शास्त्र कहते है, "हाँ।" हराव अभक्तस्य कुतो महद्गुणा। उनके पास कोई अच्छे गुण क्यों नहीं हैं? क्योंकि मनो-रथेना: "वे मानसिक स्तर पर मंडरा रहें हैं।" उन्हें आध्यात्मिक स्तर का कोई अहसास नहीं है। इसलिए आप इन सभी महान वैज्ञानिकों, दार्शनिकों को पाएंगे, वे बस मन द्वारा मनगढ़ंत बातें कर रहे हैं। मन का कोई मूल्य नहीं है। मन से आप आध्यात्मिक स्तर तक नहीं पहुँच सकते, क्योंकि यह भौतिक है। भौतिक साधन से आप आध्यात्मिक स्तर पर नहीं जा सकते। यह संभव नहीं है।"
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