"रूप गोस्वामी हमारे गुरु हैं। नरोत्तम दास ठाकुर ने कहा, रूप-रघुनाथ-पदे, होइबे आकुति, कबे हम बूझबो, श्री-युगल-पीरति। यदि हम भगवान के परम व्यक्तित्व की पारलौकिक स्थिति को समझना चाहते हैं, तो हमें गुरु, गुरु-परंपरा प्रणाली से गुजरना होगा। अन्यथा यह संभव नहीं है। रूप-रघुनाथ पदे होइबे आकुति। जब तक हम इस प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करते, जब तक हम समर्पित नहीं होते . . . यह पूरी प्रक्रिया समर्पण है। कृष्ण यही चाहते हैं। सर्व-धर्मान् परित्यज्य (भ. गी. १८.६६)। इसलिए यदि आप भगवान के पास जाना चाहते हैं, तो आपको बहुत विनम्र बनना होगा। और किसके प्रति? "कृष्ण यहाँ नहीं हैं। मैं किसके प्रति आज्ञाकारी बनूँ?" नहीं। उनके भक्त के प्रति, उनके प्रतिनिधि के प्रति। कार्य है आज्ञाकारी बनना।"
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