HI/760317 - श्रील प्रभुपाद मायापुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"एक भक्त जो हमेशा कृष्ण और उनकी लीलाओं के विचार में लीन रहता है . . . इसलिए हम कृष्ण और उनकी लीलाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। यह हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। ये सभी पुस्तकें जो हम वितरित और प्रकाशित कर रहे हैं, ये क्या हैं? ये कृष्ण और उनकी लीलाएं हैं, बस इतना ही। त्वद्-वीर्य-गयन-महामृत-मग्न (श्री. भा. ०७.०९.४३)। इसलिए यदि आप बस हमारी पुस्तकों को बहुत ध्यान से पढ़ते हैं, तो तुरंत दिल की धड़कन, चिंता की यह बीमारी बंद हो जाएगी। क्योंकि इस तमो-गुण और रजो-गुण के उत्पाद गंदी चीजों के कारण . . . यही हमें परेशान कर रहा है। हम तमो-गुण और रजो-गुण से आच्छादित हैं रजो-गुण, रजस-तमः। तो रजस-तमः का अर्थ है लालच और कामुक इच्छाएँ। यह रजस-तमः है। तो हमें . . . अगर हम वास्तव में चिंताओं से मुक्त होना चाहते हैं, तो हमें सीखना होगा कि इसे कैसे मारना है, या रजस-तमो भावः (श्री. भा. १.२.१९) के कारण इस चिंता से कैसे बचना है।"
760317 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०९.३९ - मायापुर