"कृष्ण कहते हैं, अवजानन्ति मां मूढ़ मानुषीं तनुम् आश्रितः (भ. गी. ९.११)। जब कृष्ण साधारण मनुष्य की तरह आते हैं और पांडवों के साथ रहते हैं, तो लोग उन्हें साधारण मनुष्य के रूप में लेते हैं। वह मूढ़ हैं। अवजानन्ति मां मूढ़ः। हर चीज में कृष्ण हैं। बस हमें हर जगह, हर अणु में, जो कुछ भी . . . कृष्ण को देखने के लिए अपनी दृष्टि को शुद्ध करना है यह कृष्ण भावनामृत की सर्वोच्च पूर्णता है, और यह चैतन्य-चरितामृत में वर्णित है, स्थावर-जंगम देखी न देखे तारा मूर्ति, सर्वत्र स्फूर्य तारा इष्ट देव मूर्ति (चै. च. मध्य ८.२७४ )।"
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