"यदि एक व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित हो जाए, तो वह कई लाखों लोगों का उद्धार कर सकता है। ऐसी अपेक्षा नहीं की जाती . . . आप सभी के कृष्ण भावनाभावित हो जाने की अपेक्षा नहीं कर सकते, लेकिन यदि एक व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित हो जाए, तो वह उद्धार कर सकता है। (विराम) कश्चिद् यतति सिद्धये, यतताम अपि सिद्धानां कश्चिद् . . . (भ. गी. ७.३)। तो यह इतनी आसान बात नहीं है, लेकिन यदि एक भी कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति हो, तो वह कई लाखों लोगों का उद्धार कर सकता है। (विराम) . . . ति श्रेष्ठस लोकस तद् अनुवर्तते (भ. गी. ३.२१). वहाँ एक श्रेष्ठ होना चाहिए, आदर्श व्यक्ति, और फिर हर कोई उसका अनुसरण करेगा। और कोई श्रेष्ठ नहीं है। यही कठिनाई है।"
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