HI/760502 - श्रील प्रभुपाद फ़िजी में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यही कठिनाई है। हर कोई देखता है कि, "किसी न किसी तरह, मैं गुरु बन जाता हूँ। फिर बहुत से लोग मुझे सम्मान देंगे। किसी न किसी तरह, कुछ परिस्थितियाँ बनाएँ। फिर मैं गुरु बन जाता हूँ।" यह चल रहा है। प्रामाणिक गुरु नहीं। प्रामाणिक गुरु का संकेत चैतन्य महाप्रभु ने दिया है, आमार आज्ञाय गुरु हना: "गुरु बनो।" महत्वाकांक्षा क्यों? वास्तव में गुरु बनो। लेकिन गुरु कैसे बनें? यारे देखा, तारे कहा 'कृष्ण-उपदेश' (चै. च. मध्य ७. १२८)। बस, नहीं तो गोरू।" |
760502 - वार्तालाप - फ़िजी |