"गुरु का पहला कार्य पीड़ित मानवता को इस भौतिक अस्तित्व की दावानल से मुक्ति दिलाना है। इस भौतिक अस्तित्व की तुलना जंगल की आग से की गई है। आप जानते हैं कि जंगल में आग है। बड़ा जंगल, कोई भी वहाँ आग लगाने नहीं जाता, लेकिन स्वतः ही आग लग जाती है। इसलिए इस भौतिक अस्तित्व की तुलना जंगल की आग से की गई है। यहाँ हर कोई खुश होना चाहता है, लेकिन वहाँ आग है। अगर हम नहीं चाहते हैं, तो भी आग है, दुख है, क्योंकि यह स्थान, यह भौतिक संसार, दुख का स्थान है। इसकी पुष्टि स्वयं कृष्ण ने भगवद्गीता में की है, दुःखालयं अशाश्वतम (भ. गी. ८.१५)। यह स्थान दुख के लिए है। लेकिन माया के वशीभूत होकर, हमने दुखों को सुख या आनंद के रूप में ले लिया है। इसे माया कहत्ते हैं।"
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