"विमर्शनम् का अर्थ है ज्ञान, संस्कृति का संवर्धन। तो वह संस्कृति कहाँ है? कोई संस्कृति नहीं है। हम प्रस्ताव करते हैं कि संस्कृति की शुरुआत "अवैध यौन संबंध नहीं" से होती है। यही शुरुआत है। इसे कौन स्वीकार कर रहा है? "अवैध यौन संबंध? अवैध यौन संबंध क्यों? यौन संबंध तो यौन संबंध है।" नहीं, वह संस्कृति की शुरुआत है, क्योंकि कुत्तों के समाज में विवाह नहीं होता, और मानव समाज में विवाह क्यों होता है? वे इससे बच सकते थे। और आजकल उससे परहेज किया जा रहा है। कलियुग में कोई विवाह नहीं होगा। यह भागवत में कहा गया है। यह कहा गया है। पाँच हज़ार साल पहले भविष्यवाणी की गई थी कि कलियुग के दौरान, स्विकार एव चोधवाहे (श्री. भा. १२.२.५)। बस देखें। इसे शास्त्र कहते हैं। पाँच हज़ार साल पहले भविष्यवाणी की गई थी कि विवाह का मतलब समझौता है। यह कलियुग में होगा। स्विकार एव चोधवाहे। इसे शास्त्र कहते हैं। भूत भविष्यत वर्तमाना, सब कुछ। यही शास्त्र है, और यही पूर्ण ज्ञान है।"
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