HI/760524 - श्रील प्रभुपाद होनोलूलू में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इसलिए हर कोई तथाकथित कर्तव्यों में लगा हुआ है, लेकिन असली कर्तव्य को भूल जाता है। इसे माया कहते हैं। माया के प्रभाव में हम भूल जाते हैं कि जीवन का उद्देश्य क्या है, जीवन का लक्ष्य क्या है। इसे माया कहते हैं। हम सोचते हैं कि यह हमारा कर्तव्य है। नहीं। मानव जीवन में असली कर्तव्य यही है कि आप घर वापस जाना चाहते हैं, भागवत धाम वापस जाना चाहते हैं, या फिर नरक में जाना चाहते हैं, जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति चाहते हैं। यह आपकी पसंद है। अन्यथा दुनिया भर में इतने सारे शास्त्र, धार्मिक व्यवस्थाएँ क्यों हैं? यह केवल भारत में ही नहीं है। समझने की क्षमता के अनुसार, हर सभ्य मानव समाज में धर्म नामक एक व्यवस्था है। यह हिंदू धर्म, ईसाई धर्म या बुद्ध धर्म हो सकता है-ये प्रमुख धार्मिक व्यवस्थाएँ हैं-लेकिन इसका उद्देश्य यह है कि जीवन की समस्याओं का समाधान कैसे किया जाए।"
760524 - प्रवचन श्री. भा. ०६.०१.२४ - होनोलूलू