"कामुक इच्छाओं और शुद्ध प्रेम के बीच क्या अंतर है? यहाँ हम, पुरुष और महिला, कामुक इच्छाओं के साथ घुलमिल रहे हैं, और कृष्ण भी गोपियों के साथ घुलमिल रहे हैं। सतही तौर पर वे एक ही चीज़ लगते हैं। फिर भी क्या अंतर है? तो इस अंतर को चैतन्य-चरितामृत के लेखक ने समझाया है, कि कामुक इच्छाओं और प्रेम के बीच क्या अंतर है? यह समझाया गया है। उन्होंने कहा है, आत्मेन्द्रिय-प्रीति-वांछा-तारे बलि 'काम' (चै. च. अदि ४.१६५): "जब मैं अपनी इंद्रियों को संतुष्ट करना चाहता हूँ, वह काम है।" लेकिन कृष्णेन्द्रिय-प्रीति-इच्छा धरे 'प्रेम' नाम: "और जब हम कृष्ण कि इंद्रियों को संतुष्ट करना चाहते हैं, तब यह प्रेम है, प्रेमा।" यही अंतर है।"
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