"भगवान की रचना में विविधताएं हैं, अवैयक्तिक नहीं। इसलिए हम देखते हैं, हम यहां बैठे हैं, आपको शरीर की एक ही विशेषता वाले दो पुरुष नहीं मिलेंगे। यहां तक कि जुड़वां भी हैं, फिर भी, हमें कुछ अंतर मिलेंगे। पिता, माता देख सकते हैं। विविधता है। यहां कहा गया है, भूतेषु गुण-वैचित्र्यात। वे गुण-वैचित्र्यात हैं। इसलिए हमें एक ही प्रकृति के दो पुरुष, एक ही सोच वाले दो पुरुष नहीं मिलते। विविधताएं। विविधताएं, यह चल रहा है। लेकिन यही हमारे बंधन का कारण है- विविधताएं। लेकिन अगर हम इन विविधताओं को पार कर सकते हैं, जैसा कि कृष्ण भगवद गीता में सलाह देते हैं, त्रै-गुण्य-विषया वेद निस्त्रै-गुण्यो भवार्जुन (भ. गी. २.४५ ). निस्त्रैगुण्यो, निर्गुण। निर्गुण का अर्थ है कोई विविधता नहीं। निर्गुण का अर्थ है ये भौतिक विविधताएँ नहीं-आध्यात्मिक विविधता। इसलिए वे गलत समझते हैं। आध्यात्मिक विविधताएँ, वे भौतिक विविधताएँ समझते हैं। इसलिए निस्त्रैगुण्यो: हमें इस भौतिक प्रकृति की विविधताओं पर विजय प्राप्त करनी है। हम आध्यात्मिक स्तर पर आ गए हैं।"
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