"मानव जीवन तपस्या के लिए है। तपो-दिव्यं पुत्रका येन शुद्धयेद् सत्त्वम् (श्री भा. ५.५.१)। सामान्य, नीच, घृणित प्रवृत्तियों के बहावे में मत आओ। इसलिए तपस्या की आवश्यकता है। तप, हम तपस्या के लिए अवैध यौन संबंध नहीं, मांस नहीं खाना, नशा नहीं करना और जुआ नहीं खेलना बताते हैं। यह तपस्या है। यह तपस्या है। अगर हम जीवन की श्रेष्ठ स्थिति चाहते हैं तो हमें इसे स्वीकार करना होगा। तपो दिव्यम्। तपस्या, तपस्या का उद्देश्य ज्ञान के पारलौकिक स्तर पर स्थित होना है, तपो दिव्यम्। तो यह जीवन, जीवन का यह मानव रूप, तपस्या और पारलौकिक ज्ञान के लिए है। यह तात्पर्य है।"
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