HI/760621b - श्रील प्रभुपाद टोरंटो में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सनातन-धर्म का अर्थ है यह भक्ति-योग। क्योंकि हम भूल गए हैं। हर कोई भगवान बनने की कोशिश कर रहा है। अब यहाँ अभ्यास करें कि भगवान का सेवक कैसे बनें। और यदि आप योग्य हैं, तथ्यात्मक रूप से, कि अब आप हैं, तो निश्चिंत रहें, कि आप भगवान के सेवक बन गए हैं, यही भक्ति-मार्ग है . . . जैसा कि चैतन्य महाप्रभु ने कहा, गोपी-भरतुर पद-कमलयोर दास-दास-दास-दासानुदास: (चै .च. मध्य १३.८०)। जब आप भगवान के सेवक के सेवक के सेवक के सेवक बनने में कुशल हो जाते हैं-सैकड़ों बार, सेवक-तब आप पूर्ण होते हैं।"
760621 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.०५ - टोरंटो