"क्रिया-कर्म, तुम्हें कर्म का फल भोगना या भुगतना ही होगा। कर्म-बन्धन। लेकिन जब तुम कृष्ण के लिए कर्म करते हो, तब तुम मुक्त हो। यज्ञार्थात कर्म अन्यत्र कर्म (भ.गी. ३.९)। कर्म अवश्य होना चाहिए। यदि तुम कृष्ण के लिए कर्म करते हो, तब तो सब ठीक है, और यदि तुम अपनी इन्द्रियतृप्ति के लिए कर्म करते हो, तब बंधन है। यदि तुम शिक्षा नहीं लेते, यदि तुम मूर्ख और दुष्ट बने रहते हो, तो तुम कष्ट भोगोगे और दूसरों के लिए भी परेशानी खड़ी करोगे। इसलिए सभी को शिक्षित, अच्छा नागरिक होना चाहिए। यह उसके लिए अच्छा है, दूसरों के लिए भी अच्छा है।"
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