HI/760626b - श्रील प्रभुपाद नव वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"बात यह है कि वास्तव में हमें इंद्रिय तृप्ति के लिए चीजों की आवश्यकता नहीं है, विशेष रूप से इस मानव जीवन में। जिसका हमने आनंद लिया है। यहां तक ​​कि एक मच्छर भी आनंद ले रहा है, कीड़ा भी आनंद ले रहा है। प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार यह व्यवस्था बहुत अच्छी है। प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः (भ.गी. ३.२७)। हर किसी को इंद्रिय भोग के लिए सुविधाएं मिली हुई हैं। मनुष्य को क्यों नहीं? मनुष्य की चेतना विकसित है; उसे बेहतर सुविधाएं मिली हुई हैं। लेकिन मनुष्य का काम इंद्रिय तृप्ति में लिप्त होना नहीं है।"
760626 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.१० - नई वृन्दावन, यूएसए