HI/760628 - श्रील प्रभुपाद नव वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इसलिए, जितना अधिक हम इस भौतिक संसार में उलझते जाते हैं, उतना ही अधिक हम आध्यात्मिक, अधिभौतिक, अधिदैविक, इन तीन प्रकार के दुखों से पीड़ित होते हैं। लेकिन माया की कृपा से हम अपने परिवार में सुखद वातावरण के कारण उन्हें भूल जाते हैं- कुटुम्भ-राम:। इसलिए कहा गया है, रमंते योगिनाः अनंते (चै. च. ९.२९)। जो योगी हैं . . . योगी कई प्रकार के होते हैं। उन सभी में से, भक्त-योगी, रमंते योगिनाः अनंते। योगी और भोगी के बीच का अंतर . . . दो वर्ग हैं। भोगी का अर्थ है जो इस भौतिक संसार का आनंद लेने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें भोगी कहा जाता है। और एक और शब्द है, रोगी। रोगी का अर्थ है रोगी। न तो योगी और न ही भोगी। योगी का अर्थ है पारलौकिक, घर वापस जाने की कोशिश करने वाला, भगवत धाम वापस जाने की कोशिश करने वाला, उन्हें योगी कहा जाता है। और जो लोग केवल इस भौतिक सुख में रुचि रखते हैं, उन्हें भोगी कहा जाता है। और जो इनमें से कुछ भी नहीं हैं, उन्हें रोगी कहा जाता है। इसलिए जो योगी हैं, वे प्रथम श्रेणी के हैं।"
760628 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.१४ - नई वृन्दावन, यूएसए