HI/760701b - श्रील प्रभुपाद नव वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए ये चीजें आवश्यक हैं, तपस्या। तपस्या का अर्थ है स्वेच्छा से कुछ ऐसा स्वीकार करना जो कष्टदायक हो सकता है। जैसे हम अवैध यौन संबंध न बनाने, जुआ न खेलने, मांसाहार न खाने की सलाह दे रहे हैं। तो जो लोग इन बुरी आदतों के आदी हैं, उनके लिए, शुरुआत में यह थोड़ा मुश्किल हो सकता है। लेकिन मुश्किल होने के बावजूद, उन्हें इसे करना ही पड़ता है। इसे तपस्या कहते हैं। सुबह जल्दी उठना, जो लोग अभ्यस्त नहीं हैं, उनके लिए यह थोड़ा कष्टदायक है, लेकिन उन्हें इसे करना ही पड़ता है। इसलिए इसे तपस्या कहते हैं। तो वैदिक आदेश के अनुसार, कुछ तपस्याएँ हैं जो अवश्य करनी चाहिए। यह नहीं है, "मैं इसे करूँ या न करूँ।" इसे अवश्य करना चाहिए। जैसे मुण्डक उपनिषद में आदेश दिया गया है कि व्यक्ति को आध्यात्मिक गुरु के पास जाना चाहिए। तद्-विज्ञानार्थं स गुरुं एवाभिगच्छेत (म. ऊ. १.२.१२)। स्वेच्छा से करने का सवाल नहीं है, लेकिन यह होना ही चाहिए। और व्यक्ति को आध्यात्मिक गुरु और शास्त्र के आदेशानुसार ही इसे करना चाहिए। इसे तपस्या कहते हैं।"
760701 - वार्तालाप बी - नई वृन्दावन, यूएसए