HI/760702 - श्रील प्रभुपाद नव वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"परमेश्वर का भक्त बनना अस्वाभाविक नहीं है। यह बहुत आसान, स्वाभाविक बात है। स्वभाव से हम कृष्ण, या परम पुरुषोत्तम भगवान से जुड़े हुए हैं। किसी न किसी तरह, परिस्थितिवश, हम अलग हो जाते हैं . . . अलग नहीं, क्योंकि यहाँ कहा गया है आत्मत्वात: परम पुरुषोत्तम भगवान है . . . यद्यपि हम सोचते हैं कि हम उनसे अलग हैं, वे हमारे हृदय में हैं। ईश्वरः सर्व-भूतानां हृद्-देशे अर्जुन (भ.गी. १८.६१)। वे इतने मिलनसार हैं कि यद्यपि हम विमुख हैं-हमें भगवान का शब्द भी पसंद नहीं है- भगवान इतने दयालु हैं कि वे मेरे हृदय में बैठे हैं, ईश्वरः सर्व-भूतानाम। वह तो बस उस अवसर की प्रतीक्षा कर रहें हैं जब हम, जीवात्मा, उनकी ओर देखेंगे। वह हमेशा उत्सुक रहते हैं।"
760702 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०६.१९ - नई वृन्दावन, यूएसए