"तो हम पूरी तरह से भौतिक प्रकृति के चंगुल में हैं, और यह चल रहा है। और इसलिए श्री चैतन्य महाप्रभु ने कहा, एई रूपे ब्रह्माण्ड ब्रह्मिते कोन भाग्यवान जीव, गुरु-कृष्ण-प्रसादे पाए भक्ति-लता-बीज (चै. च. मध्य १९.१५१)। इस तरह हम पूरे ब्रह्मांड में अलग-अलग ग्रह-मंडल में, अलग-अलग जीवन-प्रजातियों में, अलग-अलग देशों में, अलग-अलग . . . हमारे अनुसार . . . ब्रह्माण्ड ब्रह्मिते। ब्रह्माण्ड का अर्थ है ब्रह्मांड के भीतर। वे ऊपरी ग्रह-मंडल में जाने की कोशिश कर रहे हैं, और वे जा सकते हैं। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। यान्ति देव-व्रता देवान् पितृन यान्ति (भ.गी. ९.२५). लेकिन आपको ठीक से तैयारी करनी होगी। ऐसा नहीं है कि आपके पास एक स्पुटनिक या हवाई जहाज़ है तो आप ज़बरदस्ती जा सकते हैं। यह संभव नहीं है। यह सब बदमाशी है। यह संभव नहीं है। लेकिन अगर आप खुद को तैयार करते हैं तो आप जा सकते हैं। आप वापस घर भी जा सकते हैं, वापस भगवत धाम। मद-याजिनो 'पि यान्ति माम्। तो हर संभावना है। अब यह मानव जीवन का निर्णायक बिंदु है। हम उच्च ग्रह प्रणाली में जा सकते हैं, हम निम्न ग्रह प्रणाली में जा सकते हैं, हम जहाँ हैं वहीं रह सकते हैं, या यहाँ तक कि हम वापस घर भी जा सकते हैं, वापस भगवत धाम भी।"
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