"वहाँ है . . . आप चैतन्य-चरितामृत में यह श्लोक पाएंगे, कृष्ण-शक्ति विना नहे नाम प्रचारण (चै. च. अन्त्य ७.११)। कृष्ण द्वारा सशक्त किए बिना, कोई भी भगवान के पवित्र नाम का प्रचार नहीं कर सकता। कृष्ण-शक्ति विना नहे नाम प्रचारण। तो मुख्तारनामा प्राप्त किए बिना . . . जैसे कोई भी योग्य वकील है, उसे मुवक्किल से मुख्तारनामा प्राप्त करना होगा, और फिर वह बोल सकता है। यही कानून है। इसी तरह, कृष्ण से मुख्तारनामा प्राप्त किए बिना, प्रचार करना संभव नहीं है। इसलिए हमारा कार्य है . . . क्योंकि हम कृष्ण भावनामृत का प्रचार करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे हैं, हमें मुख्तारनामा प्राप्त करने के लिए योग्य होना चाहिए।"
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