HI/760712 - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार किया जा रहा है कि ये मंद बुद्धि वाले मूढ़-उन्हें मूढ़, मंद बुद्धि वाले के रूप में वर्णित किया जा रहा है-वे जीवन के वास्तविक हित को नहीं जानते हैं। न ते विदुः स्वार्थ-गतिं हि विष्णुम् (श्री. भा. ७.०५ .३१)। ये मंद बुद्धि वाले बद्धजीव, माया के प्रभाव में होने के कारण अपने वास्तविक स्वार्थ को नहीं जानते हैं। माया भी कृष्ण की शक्ति है, इसलिए बद्धजीव को दंडित करना उसका कर्तव्य है क्योंकि उन्होंने कृष्ण को भूलने का निर्णय लिया है। फिर भी, कृष्ण इतने दयालु हैं, वे स्वयं आते हैं, वे अपने भक्त, सेवक को इन बद्धजीवों को प्रबुद्ध करने के लिए अधिकृत करते हैं। अब हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन इन बद्धजीवों के स्तर को कृष्ण भावनामृत तक बढ़ाने का एक विनम्र प्रयास है। जो लोग इस व्यवसाय में लगे हुए हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से भक्त के रूप में व्यवहार करना चाहिए, और अपने उदाहरण से उन्हें दूसरों को सिखाना चाहिए और उन्हें भौतिकवादी जीवन की इस घोर अज्ञानता से ऊपर उठाना चाहिए।"
760712 - भगवद गीता के नाटक पर वार्तालाप - न्यूयार्क