"जब कोई वास्तव में सद्धर्म में होता है या वह सद्धर्म के लिए लालायित होता है, तब कृष्ण उसकी सहायता करते हैं। कृष्ण उसकी सहायता करते हैं। इसकी जानकारी हमें श्रीमद्भागवत से मिलती है। चूँकि कृष्ण सभी के हृदय में स्थित हैं, इसलिए कृष्ण उसे अवसर देते हैं। बुद्धियोगं ददामि (भ. गी. १०.१०)। तेषां एवानुकम्पार्थम, अहम् अज्ञान-जम तमः, नाशयामी आत्म-भाव-स्थो, ज्ञान-दीपेन भास्वता (भ. गी. १०.११). कृष्ण उसे वास्तविक ज्ञान देते हैं। इसलिए गुरु-कृष्ण कृपाया पाय भक्ति-लता-बीज (चै. च. मध्य १९.१५१ ). तो वह सद्-धर्म क्या है यह समझने के लिए अधिक से अधिक जिज्ञासु हो जाता है। इसलिए सद्-धर्मस्यावबोधाय। यदि कोई वास्तव में गंभीर है, निर्बन्धिनी मतिः . . . निर्बन्धिनी मतिः का अर्थ है दृढ़ विश्वास के साथ कि "इस जीवन में मैं पूरी तरह से कृष्ण भावनाभावित हो जाऊंगा, मैं कृष्ण को पूरी तरह से समझ लूंगा।" इस तरह अगर हमारे पास दृढ़ निश्चय है, तो कृष्ण सहायता करेंगे।"
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