"हम इस भौतिक अस्तित्व के कारावास से तुरंत मुक्त हो सकते हैं यदि हम चैतन्य महाप्रभु की इस शिक्षा को स्वीकार करें, जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्णेर दास (चै. च. मध्य २०.१०८)। इसलिए इतनी सारी व्यवस्था है। हमारे यहाँ कृष्ण विग्रह हैं, और हम में से हर एक सेवक के रूप में कार्यरत है। श्री-विग्रहाराधन-नित्य-नाना-श्रृंगार-तन-मंदिर-मार जनादौ। कोई मंदिर की सफाई में लगा हुआ है। हम सभी सेवक हैं। कोई विग्रह को कपड़े पहनाने में लगा हुआ है। कोई विग्रह के लिए अच्छा भोजन तैयार करने में लगा हुआ है। कोई फूल मालाएँ बना रहा है। कोई लोगों को भगवान कृष्ण की महिमा के बारे में समझाने के लिए साहित्य वितरित करने जा रहा है। तो इस तरह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का मतलब है कि हर कोई कृष्ण का सेवक बनने के लिए शत-प्रतिशत लगा हुआ है। इसलिए जो लोग ईमानदारी से भगवान की सेवा में लगे हुए हैं, वे सभी मुक्त हैं। वे सभी मुक्त हैं।"
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