HI/760717b - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद्गीता में कहा गया है, अवजानन्ति मां मूढ़ा, मानुशिम तनुम आश्रितम्, परं भावं अजानन्तो ( भ. गी. ९.११)। दुष्ट लोग नहीं जानते कि किस प्रकार के . . . कृष्ण, वे दो हाथ और दो पैर वाले मनुष्य की तरह प्रकट होते हैं। इसलिए वे नहीं समझते कि इन दो हाथों, दो पैरों की गुणवत्ता क्या है। वे सोचते हैं कि उनके पास हमारे जैसे दो हाथ, दो पैर हैं; इसलिए उन्हें मूढ़ा कहा जाता है। परं भावं अजानन्तो। मूढ़ा नाभिजानाति, माम् एभ्यः परम अव्ययम् (भ.गी. ७.१३). सर्वतो पाणि-पादः (भ.गी. १३.१४). केवल दो हाथ ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रह्माण्ड में उनके कई, कई लाखों और खरबों हाथ और पैर हैं। यह कृष्ण हैं। इसलिए इसे साधारण मनुष्य मत समझो। तब तुम्हें दुष्टों में से एक माना जाएगा। बस इतना ही। दुष्ट मत बनो; कृष्ण को समझने के लिए बुद्धिमान बनो। और यदि तुम कृष्ण को समझ लेते हो, तो तुम तुरंत मुक्त हो जाते हो।"
760717 - प्रवचन चै. च. मध्य २०.११० - न्यूयार्क