"तो हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन मानव समाज को वापस लाने का प्रयास कर रहा है, क्योंकि बंदरों और बिल्लियों और कुत्तों को कृष्ण भावनामृत में वापस लाना संभव नहीं है। यह संभव नहीं है। इसलिए जो लोग कुत्ते की मानसिकता, बिल्ली की मानसिकता, बंदर की मानसिकता वाले हैं, उनके लिए यह कठिन है। उन्हें सत्संग द्वारा अपनी मानसिकता बदलनी होगी। इसे सत्संग कहते हैं। जैसे आप शास्त्र से सुन रहे हैं, और हम शास्त्र से बोल रहे हैं। इसे सत्संग कहते हैं। सतां प्रसंगान मम वीर्य-संविदो भवन्ति ह्रत-कर्ण रसायनाः कथाः (श्री. भा. ३.२५.२५)। सत्संग, वास्तविक आध्यात्मिक संगति से, उनसे बातचीत करके, उनके साथ घुलने-मिलने से-सतां प्रसंगान मम वीर्य-संविदो-तब हम कृष्ण की असीमित शक्तियों के बारे में जान सकते हैं। मम वीर्य-संविदो भवन्ति ह्रत-कर्ण रसायनाः कथाः। तब यह सतां प्रसंगान द्वारा हृदय और कान को बहुत ही सुखद लगता है। अन्यथा यह संभव नहीं है।"
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