"तो वास्तव में यह भौतिक संसार विकृत प्रतिबिंब है। जैसे यह शरीर, आत्मा के बिना, बेकार है; इसी तरह, यह भौतिक संसार, भले ही आध्यात्मिक स्पर्श न हो, बेकार है। इसलिए जितना अधिक आप पूरे वातावरण को आध्यात्मिक बनाते हैं, उतना ही आप पर्याप्त और खुश होते हैं। यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन इसी उद्देश्य के लिए है। लोग इसे समझ नहीं सकते। वे सोचते हैं कि "ये लोग काम नहीं कर रहे हैं, बस जप और नृत्य और भोजन कर रहे हैं।" लेकिन यह हमारा काम है। (हँसी) बिना काम किए, हम सब कुछ पर्याप्त रूप से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए इस कृष्ण भावनामृत से जुड़े रहें। आप पहले से ही उन्नत हैं। यही मेरा अनुरोध है। विचलित मत होइए । आपको कभी कोई कमी नहीं होगी। यह एक तथ्य है।"
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