"आदौ श्रद्धा ततः साधु-संगः (चै. च. मध्य २३.१४)। यदि किसी में थोड़ी भी श्रद्धा है, तो अगला चरण यह है कि उसे हमारे साथ आकर कुछ दिनों तक रहना चाहिए। और यदि वह हमारे साथ कुछ दिनों तक रहता है, तो वह परमानंद से संक्रमित हो जाता है। (हँसी) आदौ श्रद्धा ततः साधु-संगः। और जैसे ही कोई परमानंद से थोड़ा संक्रमित होता है, तो वह हममें से एक बनना चाहता है। जैसे यदि आप किसी संक्रामक रोग को ग्रहण करते हैं, तो स्वाभाविक रूप से रोग विकसित होगा। इसी तरह, जैसे ही आप इस कृष्ण भावनामृत रोग को ग्रहण करते हैं, यह विकसित होगा। (हँसी) तब वह दीक्षा लेने के लिए आग्रह करता है। हाँ। आदौ श्रद्धा ततः साधु-संगो 'था भजन-क्रिया । भजन-क्रिया का अर्थ है "क्यों न सेवा में मैं स्वयं को भक्तों में से एक के रूप में शामिल करूँ?" इसे भजन-क्रिया कहा जाता है। और जैसे ही भजन-क्रिया, या भक्ति सेवा होती है, तुरंत अनर्थ-निवृत्ति: स्यात् । अनर्थ का अर्थ है अवांछित चीजें, वे नष्ट हो जाती हैं।”
|