"सभी चिंताओं से मुक्त होकर, हरे कृष्ण का जप करो। जीवन केवल जपने के लिए है। यह आदर्श वाक्य होना चाहिए। लेकिन चूँकि हमें यह शरीर मिला है, इसलिए हमें इसे बनाए रखना है। इतना ही। अन्यथा, हमें इस भौतिक संसार में एक बहुत बड़ा आदमी बनने, इसका आनंद लेने की कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। यह सब झूठ है, बेकार है। वह एक बड़ा आदमी बन जाएगा, और एक दिन मृत्यु आएगी और उसे बाहर निकाल देगी। बस देखो। तो ये सब झूठे प्रयास हैं। इसका कोई अर्थ नहीं है। सार्थक जीवन यह है कि जब तक हम जीवित रहें, पूरी तरह से कृष्ण भावनाभावित बनें। और त्यक्त्वा देहम पुनर जन्म नैति माम इति (भ.गी. ४.९)। यही चाहिए।"
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