HI/760809c - श्रील प्रभुपाद तेहरान में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अतः यहाँ विवाह का उद्देश्य समझाया गया है। पुत्रात्वे क्रिएत भार्या पुत्र पिण्ड प्रयोजनम्। एक या दो अच्छे बच्चों के उद्देश्य से विवाह करना चाहिए, न कि इन्द्रिय तृप्ति के लिए। विवाह का यही वैदिक अभिप्राय है। इसलिए हमारे कृष्ण भावनामृत आंदोलन में हम इस सिद्धांत पर विवाह की अनुमति देते हैं, न कि इन्द्रिय तृप्ति के लिए। भगवान चैतन्य के सभी मुख्य भक्त . . . या यहाँ तक कि स्वयं भगवान चैतन्य ने भी दो बार विवाह किया। इसलिए विवाह निषिद्ध नहीं है, लेकिन सब कुछ कानून के अनुसार नियामक सिद्धांत के अधीन होना चाहिए। फिर चाहे कोई संन्यासी हो या विवाहित पुरुष या ब्रह्मचारी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
760809 - प्रवचन श्री. भा. ०३.२२.२० - तेहरान