HI/760810b - श्रील प्रभुपाद तेहरान में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"वैदिक अनुष्ठान समारोह। हर जगह कुछ अनुष्ठान समारोह होते हैं। इसलिए जब आप इससे ऊपर जाते हैं . . . जैसे कृष्ण ने एक अन्य स्थान पर कहा है, वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यो (भ. गी. १५.१५)। वैदिक अनुष्ठान समारोह करने से, अंतिम लक्ष्य कृष्ण को समझना है। इसलिए यदि आप कृष्ण को समझते हैं, तो आप इस अनुष्ठान समारोह को नहीं कर सकते, क्योंकि आप उद्देश्य तक पहुँच चुके हैं। उससे पहले नहीं। वह सर्व-धर्मान् परित्यज्य है (भ.गी. १८.६६)। वैदिक अनुष्ठान समारोह यह है कि यदि आप यह यज्ञ करते हैं, तो आप स्वर्ग ग्रह पर जाते हैं और वहाँ आपको बहुत लंबे समय तक रहना होगा। जीवन, दस हज़ार साल, आपको अच्छी स्त्री मिलती है, और इसी तरह, और इसी तरह। बहुत सी चीज़ें। इसलिए लोग उसके पीछे पड़े रहते हैं, कर्म-कांड। इसलिए जब तक कोई पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान से अनभिज्ञ है, तब तक इस कर्म-कांड की आवश्यकता है। जब कोई यह समझ लेता है कि कर्म-कांड उन्नति हमारे जीवन का लक्ष्य नहीं है, हमारे जीवन का वास्तविक लक्ष्य कैसे घर वापस जाएँ, भगवत धाम वापस जाएँ, तब इन चीज़ों की आवश्यकता नहीं होती।"
760810 - वार्तालाप बी - तेहरान