"भक्ति-रसामृत में आपको विनियामक सिद्धांत मिलेंगे। इसे वैष्णव-स्मृति कहा जाता है। इसलिए यहाँ हम काम किए बिना नहीं रह सकते, और फिर भी हमें हमेशा कृष्ण भावनाभावित बनना है। यह कला, समझना और अभ्यास करना, कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। फिर मेरे इतने सारे तथाकथित भौतिक चीज़ों में लगे होने के बावजूद . . . क्योंकि एक भक्त का भौतिक चीज़ों से कोई लेना-देना नहीं है। भले ही वह शरीर के रखरखाव के लिए काम करता हो, वह भौतिक नहीं है। जैसे भक्तिविनोद ठाकुर, जो मजिस्ट्रेट थे। लेकिन एक मजिस्ट्रेट के लिए इतनी सारी किताबें लिखना संभव नहीं है- सिद्धांत-पूर्णम। इसलिए वह एक अलग, पारलौकिक स्तर पर थे। इसलिए यह संभव है, मन कृष्ण के विचार में लीन हो रहा है, सततम् कीर्तयन्तो माम् (भ.गी. ९.१४), तुष्यन्ति च रमन्ति च (भ.गी. १०.९)। यह अभ्यास से संभव है। यहाँ कर्दम मुनि एक जीवंत उदाहरण हैं। और ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं, कि हम तथाकथित भौतिक गतिविधियों में लगे रहने के बावजूद पूरी तरह से कृष्ण भावनाभावित रह सकते हैं। यह संभव है।"
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